मटर में चूर्णसिता/ पाउड्री मैल्ड्यू रोग

मटर में चूर्णसिता/ पाउड्री मैल्ड्यू रोग, कैसे करें रोकथाम, मटर की फसल को चूर्णसिता या सफेद चूर्ण रोग,
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 मटर में चूर्णसिता/ पाउड्री मैल्ड्यू रोग, कैसे करें रोकथाम।

मटर पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई जाने वाली बे मौसमी सब्जियों में एक प्रमुख सब्जी है।मैदानी क्षेत्रों में मटर का व्यावसायिक उत्पादन सर्दियों के मौसम में होता है किन्तु पर्वतीय क्षेत्रों में मटर ऊंचाई के हिसाब से बर्ष भर उगाया जाता है, इस प्रकार पहाड़ी क्षेत्रों का कृषक वे मौसम में मटर उत्पादन कर अधिक आर्थिक लाभ अर्जित कर सकता है।
मटर की फसल को चूर्णसिता या सफेद चूर्ण रोग के कारण काफी नुकसान होता है। रोग की प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों की ऊपरी सतह पर गोल तथा सुफेद धूल से ढके हुए छोटे छोटे धब्बे दिखाई पढते हैं, यह रोग पुरानी निचली पत्तियों से प्रारम्भ होता है जो बाद में पौधे के संपूर्ण भाग तना फूल फल आदि में फैल जाता है। फफूँद प्रकाश-संश्लेषण को बाधित करता है इसके कारण पत्तियाँ कमजोर व पीली हो जातीं हैं, कुछ पत्तियाँ मुड़, टूट या विकृत हो कर सूखने लगती हैं।
यह एक बीज जनित रोग है जो इरीसाइफी पीसी नामक कवक द्वारा उत्पन्न होता है।फफूंद के बीजाणु पत्तियों की कोंपलों और अन्य पौधों के अवशेषों के अंदर जाड़े का समय व्यतीत करते हैं। हवा, पानी और कीट इन बीजाणुओं को पास के अन्य पौधों तक पहुँचाते हैं। पाउडरी मिल्ड्यू रोग शुष्क स्थितियों में सामान्य रूप से अधिक विकसित होता है। यह फफूंद 10-12° सेन्टीग्रेड के बीच जीवित रहती है, लेकिन इसके लिए सबसे अनुकूल स्थितियाँ 30° सेन्टीग्रेड. है । थोड़ी-सी बरसात और सुबह की सामान्य ओस पाउड्री मिल्ड्यू के फैलने की गति को बढ़ा देती हैं।
रोकथाम -
1. रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का प्रयोग करें।
2. बुवाई से पूर्व बीज का हौटवाटर ट्रीटमेंट करें।
3. बेहतर वायु- संचार के लिए पौधों के बीच में पर्याप्त जगह छोड़कर बीज की बुवाई करें।
4. रोग या कीट के प्रकोप को जांचने के लिए खेतों की नियमित निगरानी करें।
5. रोग का पहला धब्बा दिखाई देने पर संक्रमित पत्तियों को हटा दें व नष्ट करें।
6. संक्रमित पौधों को छूने के बाद स्वस्थ पौधों को नही छूएं ।
7. सूखी धासफूस की मल्चिंग करें जिससे भूमि से पत्तियों तक रोग के बीजाणुओं के प्रसार को रोका जा सके।
8. रोग के प्रति गैर-संवेदनशील फसलों के साथ फसल चक्र अपनाएं।
पौधों को संतुलित पौषण देने वाली खादों को खेत में डालें।
9. फसल कटाई के बाद पौधों के अवशेषों को हटा कर नष्ट करें जिससे आगामी फसल को इस रोग से बचाव किया जा सके।
जैविक नियंत्रण-
रोग से बचाव हेतु पौधों पर नीम आयल एक चम्मच दवा दो लीटर पानी में घोल बनाकर या एक गिलास पुराना सड़ा मट्ठा/ छांच में छ गिलास पानी मिलाकर लगातार एक हफ्ते के अन्तराल में पौधों पर छिड़काव करने से रोग से बचा जा सकता है।
रोग के फैलने पर रासायनिक उपचार द्वारा ही रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है। रोग की रोक थाम हेतु कैराथेन या कार्बनडाजिम 0.1% या घुलनशील गंधक, सलफेक्स (Sulfex) 0.2% दो ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें यदि आवश्यक हो तो 10 दिनों के बाद पुनः छिड़काव और करें।

लेख- डा० राजेंद्र कुकसाल।

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