जिला प्रशासन पौड़ी के कुशल सामंजस्य से रोजगार सृजन का अनूठा उदाहरण - Unique example of employment generation through efficient coordination of district administration Pauri

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 सफलता की कहानी- अभिषेक सिंह रावत व श्री अरविन्द सिंह रावत 

"योगः कर्मसु कौशलम्" श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान ने योग के विषय में कहा है कि योग से ही कर्मों में कुशलता आती है। कर्मयोग की महत्ता बताते हुये गीता में वर्णन आता है कि

"नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।

शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः॥" 

॥गीता अध्याय 3, श्लोक 8॥

तू शास्त्रविहित कर्तव्य कर्म कर, क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर निर्वाह भी सिद्ध नहीं होगा। अर्थात् जीवन यापन हेतु कर्म करना आवश्यक है। गीता में भगवान ने सांख्ययोगियों अर्थात् सन्यासियों के लिये भी कर्म को आवश्यक बताया है। वर्तमान में भी समाज में कई कर्मयोगियों के उदाहरण हमारे समक्ष हैं। समय व परिस्थिति को पहचान उचित निर्णय लेकर किया गया कार्य अवश्य ही सफल होता है।

महामारी के इस विकट समय में पलायन की विभीषिका से अभिशप्त उत्तराखण्ड के ग्राम्यसमाज में कई लोगों ने महाराज पृथु (इनके नाम से ही इस धरा का नाम पृथ्वी हुआ है) की भांति पृथ्वी से रत्नों को उत्पादित करने का संकल्प लेकर कार्य किया है। कोरोना महामारी के कारण लाखों प्रवासी व अंसगठित क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोग रोजगारविहीन हो गये। कुछ ने स्वरोजगार का मार्ग चुना तो कुछ पुनः पाने की आशा लिये रोजगार खोज रहे हैं।

इन्हीं कर्मयोगियों में से जनपद पौड़ी के पोखड़ा विकासखण्ड के ग्राम वीणाधार निवासी 18 वर्षीय श्रीअभिषेक रावत जो कि  हिमालय विश्वविद्यालय से उद्यानिकी से डिप्लोमा कोर्स कर रहे हैं व उनके चाचाजी श्रीअरविन्द रावत जी जो कि कोरोना महामारी के कारण दिल्ली में अपना रोजगार खोकर प्रवासी के रुप में गांव वापस आए हैं। व इन्होंने यहीं कार्य करने का निश्चय किया पुनः रोजगार हेतु दिल्ली जाने की अपेक्षा।

भौतिकता की दौड़ कह लें या संसाधनों का अभाव या नीतिनियन्ताओं की अकर्मण्यता जिसके परिणामस्वरुप वीणाधार गांव के 70 परिवारों में से 18 पलायित हो चुके हैं। पलायन कर चुके परिवारों की लगभग 70 नाली बंजर भूमि को अभिषेक जी ने व अरविन्द जी ने इस शर्त के साथ 10 वर्षों के पट्टे पर ले लिया कि हम आपकी बंजर भूमि को आबाद करेंगे आप 10 वर्ष तक भूमि को वापस नहीं मांगेंगे।

पहाड़ के ग्राम्यजीवन की विकटता का अनुभव कराने के लिये 5G की गति से भागते विकसित शहरों व कस्बों की तुलना में 10-10 किमी का पैदल दुर्गम मार्ग व संचार की 2G तकनीकी का भी अभाव जैसी समस्याएं  ही पर्याप्त हैं।

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सिंचाई के साधनों का अभाव, उन्नत कृषिसाधनों का अभाव व सबसे महत्वपूर्ण उत्पादों हेतु प्रतिस्पर्द्धी बाजार का अभाव जैसी समस्याओं के होते हुए भी इन दोनों ने अपने बाहुबल पर भरोसा करते हुए बंजर जमीन को आबाद करने का प्रयत्न प्रारम्भ कर दिया।

जंहा चाह वंहा राह की कहावत के अनुरुप जलागम परियोजना यूनिट कंडाली नदी रीठाखाल के द्वारा बरसाती नाले ( गदेरा) से पानी के एकत्रीकरण हेतु सिंचाई टैंक का निर्माण करके दिया गया तथा एक हेक्टेयर क्षेत्र में स्प्रिंकलर लगाया गया है। इनकी जीवटता को देखकर कृषिविभाग द्वारा बंजर भूमि को आबाद करने हेतु पावर वीडर दिया गया। उद्यान विभाग द्वारा इनको पौध तैयार करने हेतु नर्सरी के लिये 100 (एक सौ) वर्गमीटर का पॉलीहाऊस लगाकर दिया गया। जंगली जानवरों से सुरक्षा हेतु ग्राम्य विकास विभाग की मनरेगा परियोजना द्वारा सुरक्षा घेर बाड़ की व्यवस्था की गई है।  वर्ष 2019 से प्रारम्भ किये गये इनके कार्य के कारण इन्होंने पहले ही सत्र में मटर की खेती से  30000 का लाभ प्राप्त किया। आंकिक दृष्टि से यह राशि भले ही कम लगती हो परन्तु बंजर भूमि को कृषियोग्य बनाने में समय लगता है व परिस्थितियों से ही व्यक्ति सीखता व समझता है। इन कर्मयोगियों का कहना है कि इन्हीं तीस हजार को तीस लाख में बदलने का इनका दृढ़संकल्प है। इस वर्ष शिमलामिर्च, टमाटर व अन्य सब्जियों की बुवाई वृहद् स्तर पर इनके द्वारा की गई है। जिससे अच्छे लाभ की सम्भावना है। 

इस प्रकार के लेखों का उद्देश्य यह  है कि हम अपने मिट्टी व पानी की महत्ता समझ सकें। एक प्रतियोगी मॉडल उत्तराखण्ड में बने इस हेतु ऐसे प्रेरणाप्रद उदाहरण आवश्यक हैं।

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