What is osteoarthritis (OA)- ऑस्टियोआर्थराइटिस (ओए)
ऑस्टियोआर्थराइटिस (ओए) को डिजनरेटिव जॉइंट डिजीज, डिजनरेटिव आर्थराइटिस और वियर-एंड-टियर आर्थराइटिस भी कहा जाता है। दो हड्डियां के सयुंक्त होने या मिलने वाले स्थान पर हड्डियों के सिरे उपास्थि नामक सुरक्षात्मक ऊतक से ढंके होते हैं। ऑस्टियोआर्थराइटिस की समस्या होने पर यह हड्डियों के जोड़ पर हड्डियों के सिरे पर स्थति उपास्थि टूट जाती है। जिससे जोड़ वाले स्थान पर की हड्डियों में रगड़न होती है। हड्डियों में रगड़न होने से बहुत तेज दर्द होता है ।
ऑस्टियोआर्थराइटिस (ओए) किसी भी उम्र में हो सकता है। अधिकतर वृद्ध लोगों में इस समस्या को ज्यादा देखा जाता है।
हड्डियों के जोड़ वाले सिरे पर उपास्थि के कमजोर होने या क्षीण होने पर जोड़ों में दर्द होने से विकलांगता की स्थति बन जाती है ।
ऑस्टियोआर्थराइटिस में उपास्थि का महत्व
हड्डी की तुलना में उपास्थि लचीला और नरम होती है। उपास्थित का मुख्य कार्य हड्डियों के जोड़ पर हड्डियों के सिरों की रक्षा करना और जोड़ के स्थान पर हड्डियों को एक दूसरे से रगड़ न हो को बचाता है।
उपास्थि में कोई रक्त वाहिका नहीं होती है इसलिए क्षतिग्रस्त कार्टिलेज की मरम्मत स्वयं नहीं हो सकती है। उपास्थि के क्षीण होने पर जब उपास्थि टूट जाती है, तो ये हड्डी की सिरे की सतह के छिद्र खुरदरे हो जाते हैं। जो जोड़ के हड्डियों में रगड़ होने से जोड़ पर दर्द होता है, और जोड़ के आसपास के ऊतकों में जलन होती है।
OA किसी भी हड्डियों के संयुक्त होने वाले स्थान पर हो सकता है। OA से शरीर के सबसे अधिक प्रभावित अंग -
हाथ
हाथ की उंगलियों
कूल्हा
घुटना
रीढ़ की हड्डी
ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण –
1 - हड्डियों में आवाज आती है।
2 - सीढ़ियों में चढ़ने व उतरने में समस्या होती है ।
3 - घुटने के अंदर सूजन।
4- आमतौर पर गर्दन या पीठ के निचले हिस्से में ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण ज्यादा देखे जाते हैं ।
ऑस्टियोआर्थराइटिस होने का कारण-
उम्र के साथ या भोजन में पोषण की कमी से हड्डियों के जोड़ क्षतिग्रस्त होते हैं। यह समय के साथ साथ समस्या को बढ़ाने के कारक होते हैं।
अन्य कारण में पिछली चोट शामिल है जैसे-
अव्यवस्थित जोड़।
फटी हुई कार्टिलेज।
लिगामेंट इंजरी।
इन सभी कारकों के कारण हड्डियों में रगड़ होती है जो बहुत तेज दर्द का कारण बनती हैं।
ऑस्टियोआर्थराइटिस (OA) से बचाव कैसे करें
1 - हरी सब्जी का प्रयोग ज्यादा करें।
2 - प्रभावित अंग को गर्म पानी से सेकें।
3 - लिक्विड डाइट ज्यादा लें अर्थात सूखा खाना प्रयोग नहीं करने चाहिए।
4 - योग करना चाहिए।
5 - चिकित्सक परामर्श में व्यायाम करना चाहिए।