कद्दू वर्गीय सब्जियाँ की अगेती खेती से भरपूर उपज व अधिक लाभ

कद्दू वर्गीय सब्जियां की उन्नतिशील किस्मैं कौन सी हैं,कद्दू वर्गीय फसल उत्पादन की विधि,कद्दू वर्गीय सब्जियाँ की अगेती खेती,खीरा तोरी लौकी करैला चप्पन
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कद्दू वर्गीय  सब्जियाँ की अगेती खेती से  भरपूर उपज व अधिक लाभ।   

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में सब्जी उत्पादन का कार्य अन्य फसलों के उत्पादन से अधिक फायदेमंद है।  बर्षात के मौसम में पर्वतीय क्षेत्रों के हर घर के पास लौकी, तोरई, चचिंडा, ककड़ी,  करेला ,कद्दू आदि  सब्जियों की बेलें  देखने को मिलती हैं। बेल वाली सब्जियों के उत्पादन की दृष्टि से पहाड़ी क्षेत्र समृद्ध हैं पर तकनीकी  जानकारी के अभाव में कृषक इन वेल वाली सब्जियां से भर पूर उपज व आर्थिक लाभ नहीं ले पाते। अकसर पहाड़ी क्षेत्रों में  बेलों में बड़वार तो खूब होती है, किन्तु बेलों पर फल काफी कम लगते हैं और इन बेलों  फूल आते हैं, किन्तु कुछ समय बाद झड़ जाते हैं। इस समस्या का मुख्य कारण है उन्नत शील किस्मों के  बीजों को  न बोना तथा  फूलों में ठीक से परागण का बर्षात के कारण न हो पाना। 

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कद्दू वर्गीय सब्जियां की उन्नतिशील किस्मैं-

खीरा - पूसा संयोग (हाइब्रिड), पोइंसेट, जापानीजलौंग ग्रीन  ।

तोरी -  पूसा चिकनी, पूसा नसदार, सतपुतिया ।

लौकी - पूसा समृद्धि, पूसा नवीन, पूसा संदेश  ।

करैला - पूसा दो मौसमी, पूसा विशेष । 

चप्पन कद्‌दू (मैरो)- अर्ली येलो, पूसा प्रोलिफिक, आस्ट्रेलियन ग्रीन, पूसा अलंकार (हाइब्रिड)।

कद्दू -  पूसा विकास, पूसा विशवास ।

बेल वाली  फसलों में बीज के जमाव हेतु 18 डिग्री सेल्सियस से अधिक  तापमान की आवश्यकता होती है, यह तापमान अप्रैल मई माह में पहाड़ी क्षेत्रों में सामान्यतः  आ पाता है। इसलिए बीज की बुआई अप्रैल मई में की जाती है। जून जुलाई माह में बेलों पर फूल लगने लगते हैं ।

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कद्दू बर्गीय फसलों के पौधे  द्विलिंगी (monoecious)  होते हैं, अर्थात  एक ही पौधे पर नर व मादा पुष्प होते हैं। पुष्प  एक लिंगी (uni sexual) अर्थात नर व मादा पुष्प अलग अलग लगते हैं। मादा पुष्प में नीचे छोटा सा फल लगा होता है जब कि नर पुष्प सीधे डंडी पर खड़ा रहता है। 

मादा/नर पुष्पों के खिलने के  समय पर  बर्षात का मौसम रहता है। परागण याने नर पुष्प के पराग जब मादा पुष्प के stigma( वर्तिकाग्र) में गिरते हैं तभी फल विकसित होते हैं। परागण मुख्यतया मधुमक्खियों द्वारा ही होता है ।

वर्षा के कारण नर पुष्पों का अधिकतर पराग धुल जाता है साथ ही मधुमक्खियां बर्षा के कारण फूलों पर नहीं बैठ पाती जिस कारण परागण नहीं हो पाता है। परागण न होने के कारण फल विकसित नहीं हो पाते हैं तथा कुछ समय बाद सड़ कर गिर जाते हैं।

माह फरवरी  में बीजों को अंकुरित कर, ली जा सकती है भरपूर उपज-

इन सब्जियों की अगेती खेती करने से कृषकों को अधिक आर्थिक लाभ मिलता है।  इन सब्जियों के बीजों को माह फरवरी  में  अंकुरण करवाते हैं,इस कार्य हेतु जिन सब्जियां की फसल लेनी है, आवश्यकतानुसार बीज लेकर 24 घंटे पानी में भिगो लें, ध्यान रहे पानी ज्यादा ठंडा न हो, पानी में भीगे बीजों को एक टाट या किसी कपड़े में रखकर बीजों के साथ मिट्टी या गोबर की फन्की (बारीक किया हुआ गोबर) मिला लें फिर इसकी पोटली बना लें। बीज की इस पोटली को आधा सडे गोबर के ढेर के अन्दर 6 - 7 दिनों के लिए रखें पोटली बन्धे कपड़े का एक हिस्सा गोबर के ढेर से बाहर रखें जिससे बीजों को बाहर निकाल ने में  आसानी होगी। 

 अंकुरित बीजों को पौलीथीन की थैलियों या सामाजिक कार्यों में प्रयोग में लाये बेकार पड़े प्लास्टिक के गिलासों में उगायें। पौधों की पौली हाउस , पौली टनल ,प्लास्टिक से स्व निर्मित छोटे से घर या ऐसे स्थान पर जहां पौधों को पाले से बचाया जा सके में नर्सरी तैयार की जा सकती है।

पौध तैयार करने के लिए 15 x 10 से.मी. आकार की  पॉलीथीन की थैलियों/ प्लास्टिक के गिलास में 1:1:1 मिट॒टी, बालू व गोबर की खाद (यदि रेत उपलब्ध न हो तो गोबर की मात्रा बढ़ा दें )भरकर जल निकास की व्यवस्था हेतू सुजे की सहायता से छेद कर लेते हैं। 

बाद में इन थैलियों में लगभग 1 से. मी.की गहराई पर बीज की बुआई करें तथा हजारे की सहायता से पानी लगाते हैं। लगभग 4 सप्ताह में पौधे खेत में लगाने के योग्य हो जाते हैं। जब फरवरी मार्च माह में पाला पड़ने का डर समाप्त हो जाये तो पॉलीथीन की थैली को ब्लेड से काटकर हटाने के बाद पौधे की मिट॒टी के साथ खेत में बने भरे हुए गड्ढों में सुरक्षित रोपाई करके पानी लगाते हैं। इस प्रकार लगभग एक से डेढ़ माह बाद अगेती फसल तैयार हो जाती है जिससे किसान भरपूर फसल मिलती है,जिससे कृषक अधिक लाभ ले सकता है।

लेखक- 

डा० राजेंद्र कुकसाल.

मोबाइल नंबर- 9456590999

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