Jagar gayika rameshwar bhatt -उत्तराखंडी लोकगीतों की संरक्षक श्रीमती रामेश्वरी भट्ट

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 जागर गायिका श्रीमती रामेश्वरी भट्ट

कोई भी क्षेत्र अथवा भू भाग हो या भाषा बोली हो उसकी पहचान एक निश्चित् सांस्कृतिक विरासत से होती है। जितनी समृद्ध विरासत होगी उतनी ही उस भाषा या बोली का प्रसार होता रहेगा। ऐसे ही उत्तराखण्ड में गढ़वाल, कुमाऊं व जौनसार क्षेत्र है जिसमें गढ़वाली, कुमाऊंनी व जौनसारी बोली जाती है। 

समृद्ध लोकसंगीत की परम्परा को अपने में समेटे उत्तराखंड क्षेत्र एक ऐसी बहुमूल्य विरासत का प्रतीक है जिसकी जड़ें घर घर तक प्रसरित हैं। चाहे घास काटती किसी विरहन की दर्द भरी धुन हो अथवा किसी ग्वाले का रसभरा संगीत अथवा किसी भड़ की वीरगाथा हो अथवा पाण्डवों की वार्ता हो अथवा भगवती का महिमा गान अथवा इष्ट का गुणगान हो या किसी घटना दुर्घटना की कथा हो अथवा चाहे हो पर्यावरण बचाने का संग्राम। 

जीवन के हर पहलू पर आधारित ये लोकधुनें पहाड़ के साथ चलने की, मनुष्य की उस जीवटता की भी पहचान है। जिसके बल पर पहाड़ तोड़कर माधोसिंह जैसे वीर ने अपने पुत्र का बलिदान दे सूखे खेतों तक पानी पंहुचाया था। ये उस जीवटता के भी प्रतीक हैं जब कफू चौहान अपनी मातृभूमि के लिये सिर कटने के बाद भी लड़ता रहा। 

ऐसे ही अनगिनत जीवटता की गाथाएं लोक समाज में भरी पड़ी हैं। ये वो संस्कृति व समाज है जंहा देवताओं से एक ओर प्रेम भरी बातें होती है तो दूसरी ओर उनसे रुठने की भी कसमें खायी जाती हैं। यंहा देवताओं से अथवा अपने इष्ट से इतना अपनापन है कि वो भी अपना पराया हो जाता है।

उपमेय उपमान से अनभिज्ञता होते हुए भी सर्वोत्तम उपमाओं से भरी ये लोक साहित्य की परम्परा हर किसी को आकर्षित करती रही है। उत्तराखण्ड की लोक साहित्य परम्परा की अनेकों  शैलियां व विधाएं हैं। जिनमें जागर भी एक महत्वपूर्ण विधा है। जागर मुख्यतया देवताओं की पौराणिक एवं स्थानीय मान्यताओं की कथावली होते हैं। इसे स्तुतिपरक रचना भी मान सकते हैं। अपने इष्ट की लीलाओं व शक्ति का वर्णन इनके माध्यम से किया जाता है।

 यह विधा जितनी सरल लगती है उतनी सरल है नहीं। देवताओं से सम्बन्धित कथानक को गायन शैली में प्रस्तुत करते हुए शब्दरचना तत्काल करनी होती है। भाषा या बोली का समृद्ध ज्ञान जिसे हो वही जागर गायन कर सकता है। जागर शब्द संस्कृत के जाग्रत अथवा जागरण शब्द का अपभ्रंश रुप है। किसी आध्यात्मिक, आधिदैविक अथवा पराभौतिक शक्ति का आवाहन, जागरण तथा उसका अवतरण कराने का कार्य जागरों के माध्यम से उत्तराखण्ड में किया जाता रहा है। 

जागरों से भिन्न -भिन्न देवताओं के अनुसार वाद्ययन्त्रों की उसी अनुरुप लय एवं ताल के साथ  स्तुति गायन के द्वारा हमारे शरीर में स्थित उस शक्ति का आवाहन, जागरण एवं पुनः उसका यथास्थान प्रेषण या  स्थापन  किया जाता है। जागर के अतिरिक्त भी उत्तराखंड का यह समृद्ध लोकसंगीत का संसार विविधताओं से परिपूर्ण है। 

जिसमें पवाणा, माङ्गल, पाण्डववार्ता, राधाखण्डी, बाजूबन्द, झुमैला, न्योली  इत्यादि आते हैं। इन विधाओं के साथ साथ उन सभी विधाओं को, जो ज्यादा लोकप्रिय नहीं हैं। अपनी विरासत के रूप में संरक्षित एवं संवर्धित करने का प्रयत्न कलाप्रेमियों द्वारा निरन्तर किये जाते रहे हैं। इसी लोक संगीत की जागर विधा को जीवित रखने एवं प्रचारित-प्रसारित करने को दृढ़ सङ्कल्पित एक कलाकार हैं  'श्रीमती रामेश्वरी भट्ट'।

श्रीमती रामेश्वरी भट्ट का मायका उखीमठ विकासखण्ड के एक दूरस्थ ग्राम 'रांसी' में तथा ससुराल पर्यटन की दृष्टि से समृद्ध 'सारी' गांव है। श्रीमती रामेश्वरी देवी से वार्ता करने पर अपने जीवन के अनेक सोपानों पर बताते हुए वे कहती हैं कि " भगवान तुंगनाथ जी की डोली हड्ड गांव में थी और मैंने अपनी विपदा (पहाड़ की नारी के समक्ष पहाड़ से भी बड़ी विपदाएं होती हैं) को भगवान तुङ्गनाथ जी को पैयली गाकर सुनाई थी। भगवान तुङ्गनाथ जी की कृपाप्रसाद से उस दिन से मेरे मन में भगवान के हर रूप के जागर अभूतपूर्व रूप से स्वयं कथानक के अनुसार बनने लग गए। 

सन 2001 में मेरे घर के निकट स्थित शिवमंदिर में शिवमहापुराण का आयोजन हुआ, ईश्वरीय प्रेरणा से मैंने उस समय से जागर गायन प्रारम्भ कर दिया।  मेरे पति श्री मोहन भट्ट पूर्व सैनिक हैं। गृहस्थ जीवन में भी एक सैनिक की भांति उन्होंने मुझे कला के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए, मेरी दो पुत्रियों व एक पुत्र के साथ हर समय प्रोत्साहित किया। अपने परिवारजनों के सहयोग के कारण ही मैं अपनी कला को समाज के समक्ष प्रदर्शित कर पायी हूँ। 

मैं बहुत दूरस्थ क्षेत्र से होने के कारण राजकीय प्राथमिक विद्यालय राँसी से मात्र कक्षा 5 तक ही शिक्षा प्राप्त कर सकी। गीत- संगीत का प्रशिक्षण प्राप्त करने के विषय में तो कभी विचार भी नहीं उठा। बचपन मे मेरी दादी श्रीमती मैना देवी ने मुझे 'मांगल गीत' सिखाए थे।"

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जागर व मांगलों को अपनी लय और धुन में गाने वाली श्रीमती रामेश्वरी भट्ट जनपद रुद्रप्रयाग में रहकर  इस प्राचीन कला को संजोने का काम कर रही हैं। वर्ष 2013- 14 आकाशवाणी द्वारा क्षेत्रीय स्तर देहरादून में बाबा तुंगनाथ, श्रीकृष्ण भक्ति, और विवाह के गीतों की रिकॉर्डिंग की थी। इनकी कला और कौशल से प्रभावित होकर आकाशवाणी द्वारा इन्हें बी हाई ग्रेड कलाकार का स्थान दिया गया है।

केदारनाथ विधासभा क्षेत्र से विधायक माननीय श्री मनोज रावत जी द्वारा अपनी लोक संस्कृति और कला के संरक्षण के लिए गए एक अभिनव प्रयत्न ग्राम भणज में माङ्गल गीतों की कार्यशाला करवा कर किया गया। इस कार्यक्रम की प्रमुख प्रशिक्षिका के रूप में सात दिन तक श्रीमती रामेश्वरी भट्ट के द्वारा स्थानीय कला प्रेमियों को प्रशिक्षण दिया गया। इस कार्यक्रम की सफलता की गूंज दूरदर्शन देहरादून तक पहुंचने पर दूरदर्शन के द्वारा आमंत्रित किया गया। इनके द्वारा दूरदर्शन में अपनी दो प्रस्तुतियां दी जा चुकी हैं। लोक कला और संस्कृति के संरक्षण के लिए आपके  द्वारा किया गया प्रयास सराहनीय हैं।

मेशअप व डिस्को के साथ जन्मी नूतन पीढ़ी जोकि इन विधाओं से अपरिचित है। वंही जनशून्य गांवों में निवासरत पुरानी पीढ़ी सिखाए तो किसको सिखाए? उत्तराखण्डी लोकसंगीत की समृद्ध विरासत पलायन व आधुनिकता की आंच से कुछ पीछे छूटती सी दिख रही है।

इन सबके मध्य ''श्रीमती रामेश्वरी भट्ट" जैसी विशुद्ध ग्रामीण परिवेश की महिला व इनके जैसी कई  कलाकारों के कारण यह विधा अभी भी एक नए क्षितिज को छूने को तत्पर दिखती है। लोक समाज के प्रतिबिम्ब लोक साहित्य व संगीत के संरक्षण के प्रयत्न यदि स्थायी व निष्पक्षतापूर्ण रुप से हों (ताकि कलाकार की कला अभावों से ग्रस्त होकर मृतप्राय न हो जाए,) तो अनेकों लोक कलाकार नए नए प्रतिमानों को स्थापित कर एक नवीन लोकसंसार की रचना करने की शक्ति रखते हैं।

कला के द्वारा एक नई सृष्टि रचना की जा सकती है। आसन्न आपदा- विपदाओं में समाज को धैर्य धारण कराया जा सकता है।समाज को एक नवीन मार्ग दिखाया जा सकता है। श्रीमती रामेश्वरी भट्ट जी द्वारा भी कोरोना के वर्तमान संकट से मुक्ति के लिए भगवान से प्रार्थना की गई है। 

हम भी अपने स्तर पर स्वयं भी और अपनी आने वाली पीढ़ियों को अपनी इस विरासत का स्मरण कराकर अपने पूर्वजों का धन्यवाद ज्ञापित करें। अपनी संस्कृति व भाषा पर गौरवान्वित होने का भाव मन में रखें। क्योंकि सँस्कृति से ही राष्ट्र व समाज जीवित रहता है।

लेखक- श्री वेणी माधव


 

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