शिमलामिर्च/मिर्च का पत्ता मोड़क रोग
शिमलामिर्च व मिर्च की फसल में मिर्च का फल गलन, आर्द्र गलन, जीवाणु पत्ती धब्बा मिर्च का चूर्णिल आसिता जैसे कई रोग पाए जाते हैं। पत्ती मरोड़ रोग शिमला मिर्च व मिर्च की फसल को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाने वाला रोग है। इस रोग को कुकड़ा और चुरड़ा -मुरड़ा रोग के नाम से भी जाना जाता है।
पत्ती मरोड़ रोग थ्रिप्स /तेला व माइट कीट के प्रकोप के कारण होता है। शिमला मिर्च और मिर्च के पत्ते थ्रिफ्स और माइट के कारण अपने आकार से अलग रूप ले लेती हैं। मिर्च में थ्रिप्स व माइट दोनों कीटों के प्रकोप से पत्तियां विचित्र रूप से मुड़ी हुई दिखाई देती है। माइट के प्रभाव से भी पत्तियां मुड़ जाती है किन्तु ये नीचे की ओर मुड़ती है। थ्रिप्स के प्रकोप के कारण मिर्च की पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ कर नाव का आकार धारण कर लेती है।
1- थ्रिप्स (सिटरोथ्रिटस डोरसेलिस हुड) -
यह कीट पीले तिनके जैसे रंग के बहुत छोटे, पतले होते हैं। वयस्क के पंख घूसर रंग व झालरदार होते हैं। गर्मी व कम वर्षा के समय में इनकी आबादी अत्यधिक बढ़ती है। अंडे से वयस्क बनने में कीट को मात्र 20-30 दिन लगते हैं। एक बर्ष में थ्रिप्स की 12-15 जीवन काल पूरे हो जाते हैं।
इस कीट का प्रकोप प्रायः रोपाई के 2-3 सप्ताह बाद शुरू हो जाता है। यह कीट शिमलामिर्च/मिर्च के पौधों की पत्तियों एवं अन्य मुलायम भागों से रस चूसते हैं। इस कीट का प्रकोप फूल लगते समय अधिक होता है। थ्रिप्स द्वारा छतिग्रस्त पौधों को देखने पर मोजेक रोग का भ्रम होता है। पत्तियां सिकुडकर ऊपर की ओर मुड़ जाती है और नाव जैसे आकार ले लेती हैं। इस कीट के प्रभाव से पौधे की वृद्धि रुक जाती है व उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
रासायनिक विधि से रोकथाम- ट्राइजोफॉस 40 ईसी या डाईमिथियेट 30 ईसी की 30 मिली लीटर मात्रा को 15 लीटर पानी की दर से घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
अधिक प्रकोप होने पर इमिडक्लोरोपिड 5 एस एल की 5 मिली0 मात्रा को प्रति लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें।
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2- मकड़ी/ माइट (पीली माइट) (हेमिटारसोनेमस लाटस बैंक) - इस कीट से प्रकोपित भागों पर पतली, सफेद एवं पारदर्शी झिल्ली पड़ी होती है। पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती है। रस चूसने के कारण पत्तियों पर सफेद कत्थाई धब्बे बनतें है तथा पत्तियाँ प्रकोप के कारण मुरझा जाती है।
इस कीट के प्रकोप से मिर्च की फसल पर जून-जुलाई माह में कम वर्षा की स्थिति में अधिक प्रभाव होता है। शिशु तथा वयस्क दोनों अवस्थाओ में पौधों के तना, शाखा, फलियों तथा पत्तियों का रस चूसकर हानि पहुंचाते है। रस चूसने के कारण पत्तियों पर सफेद कत्थाई धब्बे बनतें है तथा पत्तियाँ प्रकोप के कारण मुरझा जाती है। प्रकोपित भागों पर पतली, सफेद एवं पारदर्शी झिल्ली पड़ी होती है।
इस कीट के शिशु तथा वयस्क अवस्था ये पत्तियों की निचली सतह पर सफेद महीन पारदर्शी झिल्ली बनाते हैं। इस कीट के वयस्क अंडाकार लाल या हरे पीले रंग के 0.4 से 0.5 मि.मी. लम्बे बालों वाला होता है। प्रथम अवस्था में यह कीट गुलाबी रंग होता है। इस कीट प्रथम अवस्था में 3 जोड़ी पैर होते है। द्वितीय तथा तृतीय अवस्था में 4 जोड़ी पैर होते है।
इस कीट के शिशु और वयस्क एक महीन पारदर्शक जाले से ढकी रहती है। वयस्क मादा कीट पत्ती के निचले सतह पर लगभग 60-65 अंडे देती है। एक सप्ताह में इस कीट के अण्डों से शिशु निकलते है और पौधों का रस चूसने लगते है। शिशु से वयस्क बनने में 6-10 दिन का कम समय होता है। इस कीट के प्रकोप से पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती है।
रासायनिक विधि से रोकथाम- एवामेक्टिन 1.5 मिली लीटर/ लीटर या क्लोरफेनापयार 5 मिली लीटर/ लीटर या वर्टिमेक 1.5 मिली लीटर/ लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव करते समय हवा के विपरीत छिड़काव नहीं करना चाहिए।
3- माहू (एफिस गॉसिपाई ग्लोवर)- यह कीट मोजेक रोग का प्रसार करते हैं। यह कीट पत्तियों और पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर रस चूसने के स्थान पर मधुस्राव करते हैं। इस कीट के प्रकोप से फल काले पड़ जाते हैं।
4- सफेद मक्खी (बेमेसिया टेबेकाई) - इस कीट के शिशु और वयस्क मिर्च की पत्तियों की निचली सतह का रस चूसते हैं। पर्णकुंचन रोग का प्रसार इसी कीट के कारण ज्यादा होता है।
रासायनिक विधि से रोकथाम- ट्राइजोफॉस 40 ईसी की 30 मिली0 को 15 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करें।
अधिक प्रकोप होने पर इमिडाक्लोरोप्रिड 5 एसएल की 5 मिली0 मात्रा को 15 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करें।
जैविक विधि से रोकथाम-
1. फसल का समय-समय पर निरीक्षण करें पौधों पर कीड़ों के अंडे, शिशु व वयस्क यदि दिखाई दें तो पौधे के उस भाग को हटा कर एक पौलीथीन की थैली में इकट्ठा कर गड्ढे में गहरा दबा कर नष्ट करें।
2- एक चम्मच प्रिल,निर्मा लिक्युड या कोई भी डिटर्जेन्ट/ साबुन , प्रति दो लीटर पानी की दर से घोल बनाकर कर स्प्रे मशीन की तेज धार से कीटों से ग्रसित भाग पर छिड़काव करें। तीन दिनों के अन्तराल पर दो तीन बार छिड़काव करें।ध्यान रहे , छिड़काव से पहले घोल को किसी घास वाले पौधे पर छिड़काव करें यदि यह पौधा तीन चार घंटे बाद मुरझाने लगे तो घोल में कुछ पानी मिला कर घोल को हल्का कर लें।
3- कीट नियंत्रण हेतु पीली एवं नीली स्टिकी ट्रैप का प्रयोग करें। स्टिकी ट्रेप पतली सी चिपचिपी शीट होती है। स्टिकी ट्रैप शीट पर कीट आकर चिपक जाते हैं तथा बाद में मर जाते हैं। जिसके बाद वह फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं। इसे टीन, प्लास्टिक और दफ्ती की शीट से बनाया जा सकता है। इसे बनाने के लिए डेढ़ फीट लम्बा और एक फीट चौड़ा कार्ड बोर्ड, हार्ड बोर्ड या टीन का टुकड़ा लें। उन पर नीला व पीला चमकदार रंग लगा दें रंग सूखने पर उनपर ग्रीस , अरंडी तेल की पतली सतह लगा दें।
इन ट्रैपों को पौधे से 30 – 50 सेमी ऊंचाई पर लगाएं। यह ऊंचाई थ्रिप्स के उड़ने के रास्ते में आएगी। टीन, हार्ड बोर्ड और प्लास्टिक की शीट साफ करके बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है। जबकि दफ्ती और गत्ते से बने ट्रैप एक दो बार इस्तेमाल के बाद खराब हो जाते हैं। ट्रैप को साफ करने के लिए उसे गर्म पानी से साफ करें और वापस फिर से ग्रीस लाग कर खेत में टांग सकते हैं। एक नाली हेतु दो ट्रेप प्रयोग करें।
4- एक लीटर , सात आठ दिन पुरानी छांच/ मट्ठा को छः लीटर पानी में घोल बनाकर तीन चार दिनों के अन्तराल पर दो तीन छिड़काव करने पर भी कीटों पर नियंत्रण किया जा सकता है।
5-नीम पर आधारित कीटनाशकों जैसे निम्बीसिडीन निमारोन,इको नीम, अचूक या बायो नीम में से किसी एक दवा का 5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर सांयंकाल में या सूर्योदय से एक दो घंटे पहले पौधों पर छिड़काव करें। घोल में प्रिल,निर्मा, सैम्पू या डिटर्जेंट मिलाने पर दवा अधिक प्रभावी होती है।
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